Sadhana Shahi

Add To collaction

यादें कसकती हैं रात भर (नज़्म) 25-Apr-2024

यादें कसकती हैं रात भर (नज़्म)

यादें कसकती रहीं रात भर, अश्कों का दरिया था बहता रहा। मैं सिसकती रही होठों पे ले हंँसी, नम आंँखों से मोती बिखरता रहा।

दर्द ऐसा था जिसको भुला ना सकी, मीठे पीड़ा का एहसास देता रहा। मैं तड़पती रही वो बिहंँसता रहा, ऐसी गंगा वो उल्टी बहाता रहा।

मैंने कोशिश किया मन में मधुरस भरे, क्षारीय, कड़वे रसों को पिलाता रहा। तराने कभी जो गाए तेरे संग, वो तराना दुखों में भिंगाता रहा।

चांँदनी रात में साथ बैठे थे हम, चाँद ही आज हमको जलाता रहा। अमावस भी पूनम सी कल लग रही थी, आज पूनम भी मुझको डरता रहा।

साधना शाही, वाराणसी

   3
3 Comments

Mohammed urooj khan

27-Apr-2024 11:54 AM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

Reply

Varsha_Upadhyay

25-Apr-2024 11:11 PM

Nice

Reply

Reena yadav

25-Apr-2024 10:53 PM

👍👍

Reply